*वैलनटाइन डे Velentine day) का पस-ए-मंज़र और इस के नुक़्सानात
*वैलनटाइन डे Velentine day) का पस-ए-मंज़र और इस के नुक़्सानात
ــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــــ
*
वैलनटाइन डे का पस-ए-मंज़र
बयान किया जाता है कि एक पादरी जिसका नाम वैलनटाइन था तीसरी सदी ईसवी में रूमी बादशाह क्लॉड यस सानी के ज़ेर हुकूमत रहता था, किसी ना-फ़रमानी की बिना पर बादशाह ने पादरी को जेल में डाल दिया, पादरी और जेलर की लड़की के माबैन इशक़ हो गया, यहां तक कि लड़की ने इस इशक़ में अपने मज़हब को छोड़कर पादरी का मज़हब नुस्रानीयत क़बूल कर लिया। अब लड़की रोज़ाना एक सुर्ख़ गुलाब लेकर पादरी से मिलने आती थी। बादशाह को जब इन बातों का इलम हुआ तो उसने पादरी को फांसी देने का हुक्म सादर कर दिया। जब पादरी को इस बात का इलम हुआ कि बादशाह ने इस को फांसी का हुक्म दे दिया है, तो उसने अपने आख़िरी लमहात अपनी माशूक़ा के साथ गुज़ारने का इरादा किया, और इस के लिए एक कार्ड उसने अपने माशूक़ा के नाम भेजा। जिस पर तहरीर था "मुख़लिस वैलनटाइन की तरफ़ से बिलआख़िर14 फरवरी को इस पादरी को फांसी दे दी गई। इस के बाद से हर14 फरवरी को ये मुहब्बत का दिन इस पादरी के नाम वैलनटाइन डे के तौर पर मनाया जाता है
वैलनटाइन डे की तारीख़ को देखते हुए ये बात वाज़िह होती है कि इस की जड़ें ईसाई रवायात और ग़ैर इस्लामी हैं। ना सिर्फ ये एक ग़ैर मुस्लिम रस्म है बल्कि उस का पस-ए-मंज़र भी किसी दीनी या अख़लाक़ी उसूल पर मबनी नहीं, बल्कि एक मुआशरती कहानी पर क़ायम है
इस्लाम में किसी भी ऐसी रस्म या तहवार में शिरकत से रोका गया है जो इस्लामी तालीम से मुतसादिम हो
नबी क्रीमﷺ ने फ़रमाया
*"मन तशब्बे बिक़ौम् फ़ेवो मिन" (सुंन अबी दाऊद
यानी जो किसी क़ौम की मुशाबहत इख़तियार करे, वो उन्ही में से है
इस्लाम मुहब्बत के मुख़ालिफ़ नहीं बल्कि इस्लाम में मुहब्बत एक मुक़द्दस जज़बा है, मगर उस का दायरा कार शरीयत के मुताबिक़ होना चाहिए। इस्लाम में जायज़ मुहब्बत वो है जो निकाह के बंधन में हो, और जो हयादारी और पाकीज़गी के उसूलों पर मबनी हो। वैलनटाइन डे के नाम पर जो आज़ादाना मेल-जोल, बे-हयाई और ग़ैर शरई ताल्लुक़ात फ़रोग़ पाते हैं, वो सरासर इस्लामी तालीम के मुनाफ़ी, और हराम हराम हराम ताल्लुक़ात हैं
वैलनटाइन डे का सबसे बड़ा नुक़्सान ये है कि इस दिन हराम ताल्लुक़ात को मज़ीद बढ़ावा दिया जाता है। नौजवान लड़के और लड़कीयां अपनी मुहब्बत को जायज़ समझ कर एक दूसरे के क़रीब आते हैं, जबकि इस्लाम में मुहब्बत और ताल्लुक़ात की जायज़ सूरत निकाह है। वैलनटाइन डे के बहाने नौजवान नसल मग़रिबी तर्ज़-ए-ज़िंदगी को अपना कर श्रम-ओ-हया की तमाम हदें पार कर जाती है। पार्कों, होटलों और दीगर मुक़ामात पर लड़के और लड़कीयां बला झिजक मुलाक़ातें करते हैं। बहुत से लोग इस मौक़ा पर पार्टीयां मुनाक़िद करते हैं जहां शराबनोशी, रक़्स-ओ-सरोद, और दीगर ग़ैर शरई सरगर्मीयां आम होती हैं
अल्लाह के रसूल नबी करीमﷺ ने इरशाद फ़रमाया औरतों के साथ तन्हाई इख़तियार करने से बचोगे इस ज़ात की क़सम जिसके क़बज़ा क़ुदरत में मेरी जान है कोई शख़्स किसी औरत के साथ तन्हाई इख़तियार नहीं करता मगर उनके दरमयान शैतान दाख़िल हो जाता है और मिट्टी या स्याह बदबूदार कीचड़ में लिथड़ा हुआ ख़िंज़ीर पर किसी शख़्स से टकरा जाये तो ये उस के लिए इस से बेहतर है कि इस के कंधे ऐसी औरत से टकराईं जो उस के लिए हलाल नहीं
(अलज़वा जर अन अलकबायर उलबाब एलिसानी फ़ी अलकबायर अलज़ाएर किताब अलंकाह
इस के इलावा जो वैलनटाइन डे के मौक़ा पर अजनबी मर्द और औरत आपस में तहाइफ़ का लेन-देन करते हैं फुक़हा-ए-किराम उस को नाजायज़ क़रार देते हैं चुनांचे बहरा लर आवक में है
*"मा यदफ़ाए अलमताशकान रशोते यजब रदेआ वला तमल्लुक"
आशिक़-ओ-माशूक़ (नाजायज़ मुहब्बत में गिरफ़्तार आपस में एक दूसरे को जो तहाइफ़ देते हैं वो रिश्वत है उनका वापिस करना वाजिब है और वो मिल्कियत में दाख़िल नहीं होते
ग़रज़ ये कि हर ज़ी-शुऊर जानता है कि14 फरवरी और इस के आस-पास के दिन यानी पूरा ही हफ़्ता जैसे वेल्टाइन वीक Velntine week) कहा जाता है इस में जो ख़ुराफ़ात मुहब्बत के नाम पर की जाती हैं, वो सरासर नाजायज़ और हराम हैं। हर वो शख़्स जो दीन-ए-इस्लाम से वाक़फ़ीयत रखता है, ये बात बख़ूबी जानता है कि इन कामों का इस्लाम से कोई ताल्लुक़ नहीं। ये ए्याम बे-हयाई, फ़ह्हाशी, नाजायज़ ताल्लुक़ात, नामुहर्रम मर्द-ओ-औरत के इख़तिलात और गुनाह के फ़रोग़ का ज़रीया हैं
इंतिहाई दुख और अफ़सोस का मुक़ाम है कि इस दिन को काफ़िरों की तरह बे-हयाई के साथ मनाने वाले बहुत से मुस्लमान भी अल्लाह और इस के रसूलﷺ के अता किए हुए पाकीज़ा अहकामात को पसेपुश्त डालते हैं और खुल्लम खुल्ला गुनाहों का इर्तिकाब कर के ना सिर्फ ये कि अपना नामा आमाल की स्याही में इज़ाफ़ा करते हैं बल्कि मुस्लिम मुआशरे की पाकीज़गी को भी इन बेहूदगियों से नापाक-ओ-आलूदा करते हैं
लिहाज़ा प्यारे नबीﷺ का कलिमा पढ़ने वाले तमाम नौजवान लड़के और लड़कीयों से गुज़ारिश है कि इस दिन की ख़ुराफ़ात और बे-हयाई से ख़ुद को महफ़ूज़ रखें। अल्लाह और इस के रसूलﷺ की ना-फ़रमानी से बचें और अपने दीनी, अख़लाक़ी और ख़ानदानी इक़दार की हिफ़ाज़त करें। याद रखें कि हराम रास्ते की मुहब्बत आरिज़ी और धोका है, जबकि पाकीज़ा और हलाल मुहब्बत निकाह के ज़रीये हासिल होती है, जो दुनिया-ओ-आख़िरत की कामयाबी का ज़रीया है
इसी तरह, वालदैन पर भी भारी ज़िम्मेदारी आइद होती है कि वो14 फरवरी के आस-पास के ए्याम में ना सिर्फ अपनी बेटीयों बल्कि अपने बेटों पर भी कड़ी नज़र रखें। बेटीयों को घर से बाहर जाने से रोकें और उनकी हिफ़ाज़त को यक़ीनी बनाएँ, क्योंकि उस दिन कई मासूम लड़कीयां फ़रेब और धोके का शिकार हो कर अपनी इज़्ज़त गंवा बैठती हैं। मगर याद रखें कि सिर्फ बेटीयों को क़ैद कर देना काफ़ी नहीं, वालदैन को अपने बेटों को भी ये नसीहत करनी चाहिए कि वो किसी की बेटी और बहन की इज़्ज़त को तार-तार ना करें। किसी की इज़्ज़त से खेलना ना सिर्फ दुनिया में ज़िल्लत का बाइस है बल्कि आख़िरत में भी सख़्त पकड़ का सबब बनेगा। ये हमारा देनी और अख़लाक़ी फ़र्ज़ है कि हम अपनी नसल को मग़रिबी तहज़ीब के इन जालों से बचाएं और उनकी रहनुमाई करें ताकि वो अपनी ज़िंदगीयों को इस्लामी उसूलों के मुताबिक़ गुज़ारें। अल्लाह हम सबको हराम कामों से महफ़ूज़ रखे और हमें पाकीज़ा और बाइज़्ज़त ज़िंदगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन
•●┄─┅━★✰★━┅─●•
Comments
Post a Comment