नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया,
साथ ही मुंशी-ए-रहमत का क़लमदान गया।
ले ख़बर जल्द कि ग़ैरों की तरफ़ ध्यान गया,
मेरे मौला, मेरे आका तेरे क़ुर्बान गया।
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया,
उन्हें जाना, उन्हें माना, न रखा ग़ैर से काम,
लिल्लाह, अल-हम्द, मैं दुनिया से मुसलमान गया।
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया,
दिल है वो दिल जो तेरी याद से मामूर रहा,
सर है वो सर जो तेरे क़दमों पे क़ुर्बान गया।
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया,
आज ले उनकी पनाह, आज मदद माँग उनसे,
फिर न मानेंगे क़यामत में अगर मान गया।
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया,
जान-ओ-दिल, होश-ओ-ख़िरद सब तो मदीने पहुँचे,
तुम नहीं चलते ‘रज़ा’, सारा तो सामान गया।
नेंमतें बाँटता जिस सिम्त वो ज़ीशान गया,
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